गणपति बप्पा मोरया! 10 दिनों का पावरफुल गणेशोत्सव— Ganesh Chaturthi से अनंत चतुर्दशी तक सब कुछ

Ganesh Chaturthi 2025

Ganesh Chaturthi: 10 दिनों का संपूर्ण मार्गदर्शन (तिथि, स्थापना, पूजा-विधि, व्रत-नियम, विसर्जन, संस्कृति)

 

 

  • तिथि और अवधि

    • Ganesh Chaturthi भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को शुरू होकर 10वें दिन अनंत चतुर्दशी पर विसर्जन के साथ समाप्त होती है। सामान्यतः स्थापना दिन के मध्याह्न में की जाती है, क्योंकि मान्यता है कि श्रीगणेश का जन्म मध्यान्ह काल में हुआ था।

    • यदि Ganesh Chaturthi तिथि दो दिनों में फैली हो, तो उदया तिथि और मध्यान्ह पूजन को प्राथमिकता दी जाती है।

  • मूर्ति स्थापना की तैयारी

    • स्थान: स्वच्छ, शांत और पूर्व या उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा की ओर मुख/स्थापना शुभ मानी जाती है। समतल चौकी पर लाल/पीले वस्त्र बिछाएं और स्वस्तिक/अर्धचंद्र बनाएं।

    • मूर्ति: शुद्ध, सौम्य भाव वाली पर्यावरण-अनुकूल (मिट्टी/क्ले) मूर्ति श्रेष्ठ मानी जाती है। मूर्ति का मुख मुख्य रूप से घर के अंदर की ओर रहे, सीधा दरवाज़े की ओर मुख से बचें।

    • संकल्प: परिवार/गृह के कल्याण, ज्ञान, बुद्धि, विघ्न-निवारण और सद्भाव के लिए 10-दिवसीय गणेश पूजन का संकल्प लें।

  • स्थापना विधि (संक्षिप्त क्रम)

    • आह्वान: आचमन, प्राण-प्रतिष्ठा मंत्र, संकल्प।

    • पूजन: आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान (पंचामृत/शुद्ध जल), वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा दल, नैवेद्य (मोदक/लड्डू), फल, दीप, धूप, आरती।

    • मंत्र: “ॐ गं गणपतये नमः” जप, गणेश अथर्वशीर्ष, गणेश स्तोत्र/चालीसा/अथर्वशीर्ष का पाठ।

    • व्रत: दिन में सात्त्विक आहार, ब्रह्मचर्य, असत्य/निंदा से दूर रहना—यह व्रत-आचरण शास्त्रोक्त माना गया है।

  • रोज़ाना (10 दिन) की दिनचर्या

    • प्रातः: स्नान-पश्चात दीप-धूप, पुष्प, दूर्वा, ताजे नैवेद्य (घर का बना मोदक/लड्डू) अर्पित करें, स्तोत्र/मंत्र-पाठ करें।

    • मध्यान्ह/सायं: आरती (जय देव जय देव, सुखकर्ता दुखहर्ता, गणेश आरती), घंटा-नाद, प्रसाद वितरण।

    • नियम: मूर्ति के सामने अनुशासन—मांसाहार/मदिरा त्याग, अश्लील/कर्कश संगीत से परहेज़; शक्य हो तो निरंतर स्वच्छता और सौम्य भजन/आरती।

  •  Ganesh Chaturthi पूजन सामग्रियों की सूची

    • पूजन स्थल: चौकी, स्वच्छ वस्त्र (लाल/पीला), कलश, नारियल, आम पत्ते।

    • देव-अर्चना: रोली/कुमकुम, चंदन, अक्षत, पुष्प, दूर्वा (21 तिल्लियों का समर्पण शुभ), धूप, दीपक (घी/तिल तेल)।

    • नैवेद्य: मोदक (उकडी/खोया), लड्डू, फल (केला/सीजनल), पंचामृत।

    • अन्य: रक्षासूत्र, सुपारी (गणेश का प्रतीक), पान-सुपारी-इलायची, दीर्घसूत्र/सूत्रधार के लिए सूती डोरा।

  • Ganesh Chaturthi प्रसाद और भोग

    • मोदक गणेशजी का प्रिय है—नारियल-गुड़ की भरावन वाले उकडी के मोदक विशेष माने जाते हैं।

    • वैकल्पिक भोग: मोतीचूर लड्डू, केसर-खीर, पूरण-पोली (कुछ क्षेत्रों में), पंचभोग। घर का शुद्ध सात्त्विक प्रसाद ही अर्पित करें।

  • सांस्कृतिक आयाम

    • महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक आदि में सार्वजनिक मंडलों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, सामाजिक सेवा (रक्तदान, पर्यावरण अभियान), भजन-कीर्तन, नृत्य-नाटक का आयोजन होता है।

    • घरों में लोकरीति से अतिथि-सत्कार, प्रसाद वितरण और सामूहिक आरती का अनुष्ठान चलता है।गणेश चतुर्थी

  • पर्यावरण-सुरक्षा और आचार

    • क्ले/मिट्टी की इको-फ्रेंडली मूर्तियाँ चुनें; रासायनिक रंग, प्लास्टर ऑफ पेरिस से बचें।

    • कृत्रिम/घर के टब/वाटर टैंक में विसर्जन करें ताकि जलाशयों पर बोझ कम हो; फूल/माला/कपड़ा अलग से कम्पोस्ट/ड्राई-वेट सेग्रीगेशन करें।

  •  Ganesh Chaturthi व्रत-नियम और सावधानियाँ

    • व्रतधारी सात्त्विक भोजन, संयम और स्वाध्याय रखें; तामसिक आहार/आदतों से परहेज़ करें।

    • अर्पण की शुद्धता, प्रसाद की स्वच्छता और अग्नि/दीप सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें; बच्चों-पशुओं से दीप/अगरबत्ती दूर रखें।

  • दैनिक आरती/मंत्र सुझाव

    • बीज मंत्र: “ॐ गं गणपतये नमः” जप 108 बार।

    • आरती: “सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची…” और “जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति…”

    • स्तोत्र: गणेश चालीसा, गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र।

  • 10वें दिन का विसर्जन (अनंत चतुर्दशी)

    • पूर्ण आरती, 21 दूर्वा समर्पण, 21 लड्डू/मोदक का नैवेद्य (स्थानीय परंपरा अनुसार), कृतज्ञता-स्मरण।

    • मूर्ति को स्वच्छ जल से स्पर्श-स्नान कर “पुनरागमन” की प्रार्थना करें—“आगे वर्षी लवकर या” जैसे भाव-वाक्य प्रचलित हैं।

    • पर्यावरण-अनुकूल विसर्जन: लोकल निकाय/सोसाइटी द्वारा निर्धारित कृत्रिम तालाब/टब का उपयोग करें।

  • घर/ऑफिस में सरल-विधि (त्वरित गाइड)

    • स्थापना: चौकी, वस्त्र, कलश, मूर्ति—दीप/धूप, पुष्प, दूर्वा, नैवेद्य, आरती।

    • रोज़: प्रातः-सायं आरती, ताजा नैवेद्य, मंत्र-पाठ 5–10 मिनट भी पर्याप्त; सात्त्विक अनुशासन बनाए रखें।

    • विसर्जन: अंतिम दिन पूर्ण आरती, नैवेद्य, कृतज्ञता, जल-सेवन विसर्जन (कृत्रिम टब) और सज्जा-सामग्री का पृथक निस्तारण।

  • सामान्य प्रश्न

    • कितने दिन रखें? परंपरा 1.5, 3, 5, 7 या 10 दिन की—सुविधा/संस्कार अनुसार चुनें, पर नियम-संयम निभाएँ।

    • कौन-सी दूर्वा? ताज़ी, तीन-पत्री तिल्लियाँ; 21 तिल्लियाँ अर्पित करना शुभ माना जाता है।

    • कार्यालय में कैसे? छोटा स्थापना-कोना, समयबद्ध संक्षिप्त आरती, बिना शोर-प्रदूषण, शुचिता और सुरक्षा के मानक के साथ।