AI नौकरियाँ “खा” नहीं रहा, बल्कि काम करने का तरीका बदल रहा है—दोहराए जाने वाले और रूटीन कार्य तेज़ी से ऑटोमेट हो रहे हैं, जबकि साथ‑साथ नए रोल और कौशल‑आधारित अवसर भी बन रहे हैं। आने वाले वर्षों में नेट‑इफ़ेक्ट उन लोगों के पक्ष में होगा जो अपस्किलिंग करके AI के साथ काम करना सीख लेते हैं.
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किन नौकरियों पर तुरंत असर
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रूटीन, नियम‑आधारित और टेम्पलेटेड कार्य जैसे डेटा‑एंट्री, बेसिक कस्टमर सपोर्ट, कैशियरिंग, सरल कंटेंट री‑राइटिंग और बेसिक ग्राफिक/वीडियो एडिटिंग पर ऑटोमेशन का दबाव सबसे ज्यादा है क्योंकि ये प्रक्रियाएँ उच्च‑आवृत्ति और दोहराव वाली हैं.
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सर्विस/ऑपरेशंस में “एजेंटिक AI” के आने से 2030 तक भारत में 1 करोड़ से अधिक जॉब‑रोल्स का काम‑काज बदलेगा—AI सहायक निर्णय‑लेने और रिपेटिटिव टास्क अपने‑आप संभालेंगे, इंसानों का फोकस जटिल मामलों पर शिफ्ट होगा.
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कितना बड़ा प्रभाव
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कई वैश्विक आकलनों के अनुसार 2025–2030 के बीच बड़े पैमाने पर “डिस्प्लेसमेंट + क्रिएशन” साथ‑साथ होगा: कुछ अनुमानों में 92 मिलियन जॉब्स डिस्प्लेस होंगी और 170 मिलियन नई भूमिकाएँ उभरेंगी—यानी कुल मिलाकर नेट‑पॉजिटिव पर भारी अपस्किलिंग की ज़रूरत होगी.
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कुछ विश्लेषण बताते हैं कि 2027–2028 तक ऑटोमेशन शिखर पर होगा; एंट्री‑लेवल क्लेरिकल/कस्टमर सपोर्ट में उच्च जोखिम है, जबकि हेल्थकेयर, शिक्षा, ‑मेंटेनेंस, साइबरसिक्योरिटी और डेटा भूमिकाओं में मांग बढ़ती दिखेगी.
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कौन से कौशल बचाते और बढ़ाते हैं अवसर
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“ARTIFICIAL INTELLIGENCE ‑कॉम्प्लिमेंटरी” कौशल: समस्या‑समाधान, आलोचनात्मक‑विचार, संचार/कहानी‑कहना, डोमेन एक्सपर्टीज़, ग्राहक‑समझ, और निर्णय‑लेना—ये वे हिस्से हैं जहाँ इंसानी बढ़त रहती है और AI मददगार बनता है.
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टेक/डेटा कौशल: डेटा विश्लेषण, प्रॉम्प्ट‑इंजीनियरिंग, ऑटोमेशन वर्कफ़्लोज़, साइबरसिक्योरिटी, नेटवर्किंग, क्लाउड‑लिटरेसी—WEF जैसे स्रोत इन स्किल‑क्लस्टर्स को तेज़ी से बढ़ता बताते हैं.
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काम “खाने” की प्रक्रिया कैसी दिखती है
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टास्क‑लेवल ऑटोमेशन: पहले जॉब नहीं, बल्कि जॉब के भीतर के दोहराए जाने वाले टास्क ऑटोमेट होते हैं—इससे रोल रीडिज़ाइन होता है, टीम‑साइज़/हायरिंग पैटर्न बदलते हैं, और प्रोडक्टिविटी बढ़ती है.
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ह्यूमन‑इन‑द‑लूप: रिसर्च, कंटेंट, सपोर्ट में AI ड्राफ्ट/समरी बनाता है और इंसान तथ्य‑जांच, संदर्भ‑समझ और निर्णय‑लेता है—इस हाइब्रिड मॉडल में भूमिकाएँ “AI ऑपरेटर/एडिटर/कंट्रोलर” की ओर बढ़ती हैं.
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क्या रणनीति अपनानी चाहिए
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रोल‑मैप बनाएं: मौजूदा काम को टास्क‑लिस्ट में तोड़ें—दोहराए जाने वाले, नियम‑आधारित, और डेटा‑भारी टास्क पहचानें और उनके लिए AI टूल‑स्टैक ट्रायल करें; समय/लागत‑बचत मापें.
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अपस्किलिंग प्लान: 8–12 हफ्तों में कोर स्किल्स जोड़ें—डेटा/ टूल्स, ऑटोमेशन, प्रॉम्प्ट‑वर्कफ़्लो, और साइबर/कंप्लायंस—क्योंकि अधिकांश नियोक्ता अब AI‑स्किल्स को प्राथमिकता दे रहे हैं.
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करियर‑मोबिलिटी: उच्च‑जोखिम जॉब्स से “AI‑कॉम्प्लिमेंटरी” रोल्स (क्वालिटी/कस्टमर‑सक्सेस/ऑप्स‑ऑटोमेशन/डेटा‑एनेबल्ड) में ट्रांजिशन की योजना बनाएं; इंटरनल प्रोजेक्ट्स/सर्टिफिकेट्स से केस‑स्टडी बनाएं.
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भारत‑विशेष संदर्भ
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भारत में विनिर्माण, रिटेल, शिक्षा और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों में एजेंटिक AI के कारण वर्कफ़्लो बदलेगा; साथ ही 30 लाख से अधिक नए टेक‑रोल्स जैसे अवसर बनते दिख रहे हैं—पर इसके लिए संगठनों को ARTIFICIAL INTELLIGENSE स्किल्स और एथिक्स‑फ्रेमवर्क में निवेश बढ़ाना होगा.
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सरकारी/उद्योग रिपोर्ट्स का सामान्य निष्कर्ष: “जॉब्स शिफ्ट होंगी, गायब नहीं”—री‑स्किलिंग और क्रॉस‑स्किलिंग से बड़े हिस्से का पुनर्विन्यास संभव है, जिसे संस्थागत सपोर्ट की ज़रूरत होगी.
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